lundi 5 septembre 2011

वो काला भुसण्ड लौड़ा

लेखिका : शमीम बानो कुरेशी

इन दिनों मेरे मौसा जी आये हुये थे और मेरा छत वाला कमरा उन्हें दे दिया था। फ़ुर्सत का समय मैं उसी कमरे में बिताती थी। मौसा भी साला बड़ा जालिम था। मेरे पर वो टेढ़ी नजर रखता था, पर मुझे उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था, साला ज्यादा से ज्यादा क्या कर लेगा, मुझे चोद देगा ना ... तो उसमें मुझे कहां आपत्ति थी। पर वो मादरचोद एक बार शुरू तो करे।

मुझे एक रात नींद नहीं आ रही थी। रात का एक बज रहा था। मन में बहुत बैचेनी सी थी। एक तो बहुत दिनों से चुदी नहीं, वो हरामी, भोसड़ी का अब्दुल भी बाहर चला गया था। मैं उठ बैठी और धीरे धीरे सुस्ताती सी छत की तरफ़ चल दी। सीढियाँ चढ़ कर मैं ज्यों ही मौसा के कमरे के पास पहुंची तो देखा लाईट जल रही थी। मैंने झांकने की कोशिश तो देखा मौसा नंगा हो कर हस्तमैथुन कर रहा था। मेरा दिक धक से रह गया। उसका मोटा काला भुसण्ड लण्ड देख कर मेरा दिल दहल गया। मैं उत्सुकतापूर्वक उसे देखती रही ... वो कभी लण्ड को ऊपर नीचे हिलाता फिर आगे पीछे करके मुठ मारता ... मेरा दिल भी मचल उठा ... साला 40 साल में भी अपनी जवानी का सत्यानाश कर रहा था। मन में आया कि अन्दर चली जाऊँ और जी भर कर चुदा लूँ। पर शराफ़त इसकी इजाजत नहीं देती थी। मेरे दिल में आग सी लग गई। मैं अपने कमरे में आ गई और अपनी चूत दबा कर सोने की कोशिश करने लगी।
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